Brahmacharya (ब्रह्मचर्य का अर्थ है)
ब्रह्मचर्य (Brahmacharya )बहुत उच्च कोटि का शब्द है,Brahmacharya Hi Jeevan Hai Pdf इस ब्लॉग मे आईये इसके बारेमे जानने प्रयास करते है,इस शब्द का अर्थ “जो ब्रह्म है उनके चरणों में चलना”। ब्रह्मचर्य मूल उद्देश्य हमारी तमाम इंद्रियों को नियंत्रित करके आत्मा परमात्मा की और उन्नति करना। भारतीय संस्कृति का यह एक महत्वपूर्ण स्थान है, आध्यात्मिक जीवन में ब्रह्मचर्य महत्वपूर्ण जगह रखता है। ब्रह्मचर्य हमारे शरीर, मन, और आत्मा की शुद्धि करने और परम पद को प्राप्त करने मे बहुत ही मददगार होता है।
Brahmacharya Importance/ब्रह्मचर्य ही जीवन है और इनकी महत्ता
भगवान कैलाशपति शंकर कहते हैं- “ब्रह्मचर्य अर्थात् वीर्य धारण यही उत्कृष्ट तप है। इससे बढ़कर तपश्चर्या तीनों लोकों में दूसरी कोई भी नहीं हो सकती। ऊर्ध्वरेता पुरुष अर्थात् अखण्ड वीर्य धारण करने वाला पुरुष इस लोक में मनुष्य रूप में प्रत्यक्ष देवता ही है।
अहा हा! क्या ही महान् इस ब्रह्मचर्य की महिमा है। परन्तु आज हम इस मानवता को भूलकर नीचता की धूलि में दास्यभाव से विचरण कर रहे हैं। कहाँ हमारे वीर्ययान सामर्थ्य-सम्पन्न पूर्वज और कहाँ हम उनकी निर्वीर्य और पद-दलित दुर्बल सन्तान ! ओह ! कितना यह आकाश-पाताल का अन्तर हो गया है। हमारा कितना भयङ्कर पतन हुआ है? इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि हमारा यह जो भीषण पतन हुआ है, उसका मुख्य कारण एकमात्र हमारे “ब्रह्मचर्य का हास” ही है। ब्रह्मचर्य के नाश से ही हमारा सम्पूर्ण सत्यानाश हो गया है। हमारा सुख, आरोग्य, तेज, विद्या, बल, सामर्थ्य, स्वातन्त्र्य और धर्म सम्पूर्ण हमारे ब्रह्मचर्य के ऊपर ही सर्वथा निर्भर है। ब्रह्मचर्य ही हमारे आरोग्य-मन्दिर का एकमात्र आधार स्तम्भ है। आधार स्तम्भ के टूटने से जैसे सम्पूर्ण भवन ढह जाता है, वैसे ही वीर्यनाश होने से सम्पूर्ण शरीर का नाश अति शीघ्र हो जाता है। जैसे-जैसे हमारे ब्रह्मचर्य का नाश होता जाता है, वैसे-वैसे हमारे स्वास्थ्य का नाश हो जाता है। “मरणं विदुपातेन जीवनं विंदु धारणात्” यह भगवान् शंकर का अमिट सिद्धान्त है। वीर्य को नष्ट करने वाला पुरुष कभी बच नहीं सकता। तत्वतः व वस्तुतः ब्रह्मचर्य ही जीवन है और वीर्यनाश ही मृत्यु है। ब्रह्मचर्य ही के अभाव से हम किसी अवस्था में सुखी और उन्नत नहीं हो सकते, ब्रह्मचर्य ही हमारे इस लोक और परलोक के सुख का एकमात्र आधार है। यही नहीं, ब्रह्मचर्य ही हमारे चारों पुरुषार्थों का मूल है। मुक्ति का प्रदाता है। वीर्य अत्यन्त अनमोल वस्तु है। इसी वीर्य के बल पर मनुष्य देवता बनता है और उसके नाश से वह पूर्ण पतित बन जाता है। बिना ब्रह्मचर्य धारण किये हुए पुरुष कदापि श्रेष्ठ पद को प्राप्त नहीं कर सकता। वीर्य-भ्रष्ट पुरुष कदापि पवित्र, धर्मात्मा व महात्मा नहीं हो सकता है। बिना ब्रह्मचर्य के प्रत्यक्ष इन्द्र भी तुच्छ और पददलित हो सकता है। तब फिर सामान्य मनुष्यों की बात ही क्या है? अतः ब्रह्मचर्य ही हमारी सम्पूर्ण विद्या, वैभव और सौभाग्य का आदि कारण है। ब्रह्मचर्य ही हमारी श्रेष्ठता, स्वतन्त्रता और सम्पूर्ण उन्नति का बीज मन्त्र है! ब्रह्मचर्य ही हमारी सम्पूर्ण सिद्धियों का एकमात्र रहस्य है!!
Brahmacharya Rules/ब्रह्मचर्य पालन करने के नियम
- जिस को भी ब्रह्मचर्य सिद्ध करना है उन्हें ब्राह्ममुहरत मे उठाना चाहिए
- जीवन मे सात्विक भोजन ही करना चाहिए, क्यों की अन्न ही मन का निर्माण करता है ।
- शरीर से अधिक यह मन पर आधारित है । इस हेतु मन को नियंत्रण मे करना पडता है । मन मे ब्रह्मचर्य का दृढ संकल्प करना चाहिए ।
- हमारी पांच ज्ञान इन्द्रियों पर पूरी पककड़ रखनी चाहिए और इन्हे भगवद स्वरुप मे लगानी चाहिए
- मन को हर पल कुछ-न-कुछ चाहिए । मन मे हरिनाम जाप करना चाहिए ।
- हर रोज प्रातः और सायं आसन और प्राणायाम करे ।
Brahmacharya Benifits(ब्रह्मचर्य के फायदे )
- हम जो कुछ भी भोजन करते है वह पहले हमारे पेट में जाकर पचने लगता है बाद मे उनका रस बनता है , उस रस का पाचन होकर उससे रक्त(blude) बनता है ।उस रक्त का पाँच दिन बाद उससे मांस बनता है । इस प्रकार मांस से मेद बनता है , मेद से हड्डी बनती है , हड्डी से मज्जा बनता है और अन्त में मज्जा से सातवीं धातु सार पदार्थ वीर्य बनता है । यही वीर्य ‘ ओजस् ‘ रूपमें पुरे शरीर में शक्ति प्रदान करता है ।
- इसके पालन से स्मृति की स्थिरता बढाती है और ग्रहण शक्ति बढ़ती है ।
- ब्रह्मचर्य के कारण बुद्धिशक्ति और इच्छाशक्ति बढ़ती है
इसका सयम से हम हर क्षेत्र मे सफलता पा सकते फिर चाहे आध्यात्मिक हो, आर्थिक हो, कुटुंबिक हो,ब्रह्मचर्य पालन से इच्छा मृत्यु प्राप्त होता है जिसका उदाहरण महाभारत मे “पितामह भीष्म” थे ।
conclusion(निष्कर्ष )
Brahmacharya Hi Jeevan Hai इस ब्लॉग मे आपको ब्रह्मचर्य बारे बताने की कोशिश की है, यह जानकारी आप के काम की होंगी